"मैं ठूँठ नहीं होना चाहता / अभिज्ञात" के अवतरणों में अंतर
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22:58, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
आओ
और मेरी करारी रोटियाँ ले जाओ
तुम्हारी प्रतीक्षा में हूँ मैं
मुझे शरमिन्दा न करो
मैं व्याकुल हूँ
देखो
मैं कितनी बेफिक्र नींद लेता हूँ
मुझे दहशत से भर जाओ
मैं इस सदी के चौमुहाने पर
स्पीडब्रेकर-सा उगना चाहता हूँ
मुझसे टकराओ
मुझे उखाड़ो।
घटनाओं मैं तुम्हारा दीन याचक हूँ
मैं अधमरी संभावना में
ठूँठ नहीं होना चाहता मुझे रगेदो।
मैं ऊब चुका हूँ
एक सार्वजनिक स्थल पर
कोरी दीवार सा रहते-रहते।
मुझ पर खंखार कर थूको
ताकि आने वाला कल
मुझे देखकर जान ले
क्या गुज़रा है गत दिनों?
कौन सी बीमारियाँ आक्रामक थीं
सिफलिस, गनोरिया, टी०बी० या
भूख, आतंक, बेकारी, साम्प्रदायिकता?
ताकि परीक्षण हो सके भली भाँति
तालू से सटी जुबानों के हर्फों का
भूख से सूखी अंतड़ियों का
हलफ़नामा पढा जा सके।
आओ,
मुझे टमाटर-सा चीर कर खा जाओ
वह आदमी के गोश्त से महंगा है।
मेरी पत्नी पर राह चलते फिक़रे कसो
तुम्हारी अंधी उत्तेजना और आक्रोश
किन गलीज कुंठाओं में व्यक्त होता है
उसका शिलालेख सबसे बेहतर
एक औरत हो सकती है
निश्चित तौर पर
क्योंकि इतिहास अपने नाजुक क्षणों में
औरत की छाँह में अठखेलियाँ करता है।
इस मजबूत और विश्वस्त शिला पर
वह सब कुछ खुँरेचो
जो तुम्हारे लावे का प्रतिफल है।
औरत जो साथ ही साथ
एक् नरम, मुलायम, ताज़ा गोश्त भी है
उसे उठा ले जाओ
मेरी ही आखों के सामने
जैसा और किन्हीं के साथ होता रहता है।