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"ग़लतफ़हमी / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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दूसरा तीसरे से मिले और फिर सब एक से लगें, सब में सब-- | दूसरा तीसरे से मिले और फिर सब एक से लगें, सब में सब-- | ||
और हर बार हम सही से ज़्यादा ग़लत हों। | और हर बार हम सही से ज़्यादा ग़लत हों। | ||
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12:47, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
उसने मुझे आदाब कहा और पूछा अरे कहाँ रहे इतने रोज़
सुना आपके मामू का इंतकाल हो गया?
कौन? लगता है आपको कुछ...
आप वो ही तो जो रमना में रहते हैं इमली के पेड़ के पीछे?
नहीं, मैं...
अरे भई माफ़ कीजिए बिल्कुल वैसे ही दिखते हैं आप
वैसी ही शक्ल बाल वैसे ही सुफ़ेद और रंग भी...
कोई बात नहीं भाई हम तो चाहते हैं कि एक चेहरा दूसरे से
दूसरा तीसरे से मिले और फिर सब एक से लगें, सब में सब--
और हर बार हम सही से ज़्यादा ग़लत हों।