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"अपवाद / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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जब सब वाह वाह कर रहे हों | जब सब वाह वाह कर रहे हों |
13:17, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
जब सब वाह वाह कर रहे हों
जब पूरे मुल्क में एक ही नाम का जाप हो
तब मैं उठूंगा और कहूंगा--
और सब तो ठीक, पर उस इन्सान में
एक ख़राबी भी थी,
वो यह कि लोग जब खाने बैठते
वह नाक में उंगली कोंच लेता ।
जब सब थू थू कर रहे हों
जब मौत के बाद भी फाँसी की मांग हो
तब मैं उठूंगा और कहूंगा--
ख़ुदा के बन्दों, उस हैवान में एक
अच्छाई भी थी,
वो यह कि जब लोग एक साथ सोए
उसने कभी अकेले मसहरी नहीं बाँधी ।