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आज तूने / अरुणा राय

33 bytes removed, 16:34, 5 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अरुणा राय
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{{KKCatKavita}}<poem>आज तूने स्वप्न की शुरूआत कर दी<br>रात ही थी रात तूने प्रात कर दी<br>निपट खाली था यह अपना हृदय भी<br>तूने तो बस चंपई सौगात कर दी<br>आज...<br><br>स्वप्न था या के सचमुच था वो तू ही<br>बेले गेंदा चमेली चंपा सोनजूही<br>छलकते खुशबुओं से नेत्र थे वो क्या लबालब<br>तूने तो इस मरूथल में बरसात कर दी<br>आज...<br><br>तस्वीर में बैठा है तू तो अब भी सम्मुख<br>हथेली पर टिकाए ठुड्डियां कुछ सोचता सा<br>लीले डालती हैं इन निगाहे की भंवर तो<br>किस अनोखे अनमने से दर्द की यह बात कर दी<br>
आज...
स्वप्न था या के सचमुच था वो तू ही
बेले गेंदा चमेली चंपा सोनजूही
छलकते खुशबुओं से नेत्र थे वो क्या लबालब
तूने तो इस मरूथल में बरसात कर दी
आज...
तस्वीर में बैठा है तू तो अब भी सम्मुख
हथेली पर टिकाए ठुड्डियां कुछ सोचता सा
लीले डालती हैं इन निगाहे की भंवर तो
किस अनोखे अनमने से दर्द की यह बात कर दी
आज...
</poem>
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