Changes

{{KKRachna
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
|संग्रह=मेरा सफ़र / अली सरदार जाफ़री
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>
 
'''शो’लः-ए-ख़ुर्शीद-ए-महशर'''
 
 
अकीदे बुझ रहे शमे-जाँ गुल होती जाती है
मगर ज़ौके़-जुनूँ की शो’ला-सामानी नहीं जाती
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits