भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बच्चे एक दिन / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अशोक वाजपेयी
 
|रचनाकार=अशोक वाजपेयी
 
}}   
 
}}   
 
+
{{KKCatKavita}}
 
+
<poem>
 
बच्चे  
 
बच्चे  
 
 
अंतरिक्ष में  
 
अंतरिक्ष में  
 
 
एक दिन निकलेंगे  
 
एक दिन निकलेंगे  
 
 
अपनी धुन में,  
 
अपनी धुन में,  
 
 
और बीनकर ले आयेंगे  
 
और बीनकर ले आयेंगे  
 
 
अधखाये फलों और  
 
अधखाये फलों और  
 
 
रकम-रकम के पत्थरों की तरह  
 
रकम-रकम के पत्थरों की तरह  
 
 
कुछ तारों को ।  
 
कुछ तारों को ।  
 
 
  
 
आकाश को पुरानी चांदनी की तरह  
 
आकाश को पुरानी चांदनी की तरह  
 
 
अपने कंधों पर ढोकर  
 
अपने कंधों पर ढोकर  
 
 
अपने खेल के लिए  
 
अपने खेल के लिए  
 
 
उठा ले आयेंगे बच्चे  
 
उठा ले आयेंगे बच्चे  
 
 
एक दिन ।  
 
एक दिन ।  
 
 
  
 
बच्चे एक दिन यमलोक पर धावा बोलेंगे  
 
बच्चे एक दिन यमलोक पर धावा बोलेंगे  
 
 
और छुड़ा ले आयेंगे  
 
और छुड़ा ले आयेंगे  
 
 
सब पुरखों को  
 
सब पुरखों को  
 
 
वापस पृथ्वी पर,
 
वापस पृथ्वी पर,
 
 
और फिर आँखें फाड़े  
 
और फिर आँखें फाड़े  
 
 
विस्मय से सुनते रहेंगे  
 
विस्मय से सुनते रहेंगे  
 
 
एक अनन्त कहानी  
 
एक अनन्त कहानी  
 
 
सदियों तक ।  
 
सदियों तक ।  
 
 
  
 
बच्चे एक दिन......
 
बच्चे एक दिन......
 
  
 
(रचनाकालः1986)
 
(रचनाकालः1986)
 +
</poem>

18:12, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

बच्चे
अंतरिक्ष में
एक दिन निकलेंगे
अपनी धुन में,
और बीनकर ले आयेंगे
अधखाये फलों और
रकम-रकम के पत्थरों की तरह
कुछ तारों को ।

आकाश को पुरानी चांदनी की तरह
अपने कंधों पर ढोकर
अपने खेल के लिए
उठा ले आयेंगे बच्चे
एक दिन ।

बच्चे एक दिन यमलोक पर धावा बोलेंगे
और छुड़ा ले आयेंगे
सब पुरखों को
वापस पृथ्वी पर,
और फिर आँखें फाड़े
विस्मय से सुनते रहेंगे
एक अनन्त कहानी
सदियों तक ।

बच्चे एक दिन......

(रचनाकालः1986)