Changes

वापसी / अशोक वाजपेयी

94 bytes removed, 13:01, 8 नवम्बर 2009
|संग्रह=कहीं नहीं वहीं / अशोक वाजपेयी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जब हम वापस आयेंगे
तो पहचाने न जायेंगे-
हो सकता है हम लौटें
पक्षी की तरह
और तुम्हारी बगिया के किसी नीम पर बसेरा करें
फिर जब तुम्हारे बरामदे के पंखे के ऊपर
घोंसला बनायें
तो तुम्हीं हमें बार-बार बरजो-
जब हम वापस आयेंगे<br>या फिर थोड़ी सी बारिश के बादतो पहचाने न जायेंगे-<br>तुम्हारे घर के सामने छा गयी हरियालीहो सकता है हम लौटें<br>पक्षी की तरह<br>वापस आयें हमजिससे राहत और तुम्हारी बगिया के किसी नीम सुख मिलेगा तुम्हेंपर बसेरा करें<br>तुम जान नहीं पाओगे किफिर जब तुम्हारे बरामदे के पंखे के ऊपर<br>घोंसला बनायें<br>तो तुम्हीं हमें बार-बार बरजो-<br><br>उस हरियाली में हम छिटके हुए हैं।
या फिर थोड़ी सी बारिश के बाद<br>हो सकता है हम आयेंतुम्हारे घर पलाश के सामने छा गयी हरियाली<br>पेड़ पर नयी छाल की तरह वापस आयें हम<br>जिससे राहत और सुख मिलेगा तुम्हें<br>जिसे फूलों की रक्तिम चकाचौंध मेंपर तुम जान लक्ष्य भी नहीं पाओगे कि<br>उस हरियाली में हम छिटके हुए हैं।<br><br>कर पाओगे।
हो सकता है हम आयें<br>पलाश के पेड़ पर नयी छाल की तरह<br>जिसे फूलों की रक्तिम चकाचौंध में<br>रूप बदलकर आयेंगेतुम लक्ष्य बिना रूप बदले भी नहीं कर पाओगे।<br><br>बदल जाओगे-
हम रूप बदलकर आयेंगे<br>तुम बिना रूप बदले भी<br>बदल जाओगे-<br><br> हालाँकि घर, बगिया, पक्षी-चिड़िया,<br>हरियाली-फूल-पेड़, वहीं रहेंगे<br>हमारी पहचान हमेशा के लिए गड्डमड्ड कर जायेगा<br>वह अन्त<br>जिसके बाद हम वापस आयेंगे<br>और पहचाने न जायेंगे।<br/poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits