भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिल्ली की नागरिकता / असद ज़ैदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{KKGlobal}}
+
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=असद ज़ैदी
 
|रचनाकार=असद ज़ैदी
 
|संग्रह=कविता का जीवन / असद ज़ैदी
 
|संग्रह=कविता का जीवन / असद ज़ैदी
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
+
<poem>
 
+
 
'''(विश्वनाथ और हरीश के लिए )
 
'''(विश्वनाथ और हरीश के लिए )
 
  
 
जैसी पाँचवीं कक्षा में गणित मेरे लिए वैसी इस शहर में भीड़ थी
 
जैसी पाँचवीं कक्षा में गणित मेरे लिए वैसी इस शहर में भीड़ थी
 
  
 
फ़्लैशबैक ख़त्म हुआ ।  बारिश में भीगता एक रोज़ चला जाता था
 
फ़्लैशबैक ख़त्म हुआ ।  बारिश में भीगता एक रोज़ चला जाता था
 
 
कि एक भली औरत ने मुझे एक छाता दिया जो मैंने ले लिया
 
कि एक भली औरत ने मुझे एक छाता दिया जो मैंने ले लिया
 
 
बिना कुछ बोले अंत में एक दिन एक मक़ाम पर हम विदा हुए
 
बिना कुछ बोले अंत में एक दिन एक मक़ाम पर हम विदा हुए
 
  
 
कहिए श्रीमान कैसे हैं ? यह एक दोस्त का ख़त था शहर के
 
कहिए श्रीमान कैसे हैं ? यह एक दोस्त का ख़त था शहर के
 
 
दूसरे कोने से
 
दूसरे कोने से
 
  
 
मैं वहाँ गया
 
मैं वहाँ गया
 
 
गलियों में बदबू थी अँधेरा कुछ नहीं कहता था
 
गलियों में बदबू थी अँधेरा कुछ नहीं कहता था
 
 
उस दोस्त ने दाँत चमकाए
 
उस दोस्त ने दाँत चमकाए
 
 
और मुझे प्यार से खाना खिलाया
 
और मुझे प्यार से खाना खिलाया
 
 
वहाँ की हर चीज़ मेरा मुँह देखती थी
 
वहाँ की हर चीज़ मेरा मुँह देखती थी
 
 
हमने थॊड़ी शराब पी ली  रेडियो भर्रा रहा था
 
हमने थॊड़ी शराब पी ली  रेडियो भर्रा रहा था
 
 
फटे गले से कोई गाता जाता था
 
फटे गले से कोई गाता जाता था
 
 
अचानक एक विश्वास मुझमें आने लगा चाहे कुछ भी हो
 
अचानक एक विश्वास मुझमें आने लगा चाहे कुछ भी हो
 
 
मैं अन्न्तकाल तक ज़िन्दा रहूँगा
 
मैं अन्न्तकाल तक ज़िन्दा रहूँगा
 +
</poem>

19:02, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

(विश्वनाथ और हरीश के लिए )

जैसी पाँचवीं कक्षा में गणित मेरे लिए वैसी इस शहर में भीड़ थी

फ़्लैशबैक ख़त्म हुआ । बारिश में भीगता एक रोज़ चला जाता था
कि एक भली औरत ने मुझे एक छाता दिया जो मैंने ले लिया
बिना कुछ बोले अंत में एक दिन एक मक़ाम पर हम विदा हुए

कहिए श्रीमान कैसे हैं ? यह एक दोस्त का ख़त था शहर के
दूसरे कोने से

मैं वहाँ गया
गलियों में बदबू थी अँधेरा कुछ नहीं कहता था
उस दोस्त ने दाँत चमकाए
और मुझे प्यार से खाना खिलाया
वहाँ की हर चीज़ मेरा मुँह देखती थी
हमने थॊड़ी शराब पी ली रेडियो भर्रा रहा था
फटे गले से कोई गाता जाता था
अचानक एक विश्वास मुझमें आने लगा चाहे कुछ भी हो
मैं अन्न्तकाल तक ज़िन्दा रहूँगा