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भले दिनों की बात थी / फ़राज़

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}}
{{KKCatKavita}}<poem>भले दिनों की बात थी<br>भली सी एक शक्ल थी<br>ना ये कि हुस्ने ताम हो<br>ना देखने में आम सी<br><br>
ना ये कि वो चले तो कहकशां सी रहगुजर लगे<br>मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे<br><br>
कोई भी रुत हो उसकी छब<br>फ़जा का रंग रूप थी<br>वो गर्मियों की छांव थी<br>वो सर्दियों की धूप थी<br><br>
ना मुद्दतों जुदा रहे<br>ना साथ सुबहो शाम हो<br>ना रिश्ता-ए-वफ़ा पे ज़िद<br>ना ये कि इज्ने आम हो<br><br>
ना ऐसी खुश लिबासियां<br>कि सादगी हया करे<br>ना इतनी बेतकल्लुफ़ी<br>की आईना हया करे<br><br>
ना इखतिलात में वो रम<br>कि बदमजा हो ख्वाहिशें<br>ना इस कदर सुपुर्दगी <br>कि ज़िच करे नवाजिशें<br><br>
ना आशिकी ज़ुनून की<br>कि ज़िन्दगी अजाब हो<br>ना इस कदर कठोरपन<br>कि दोस्ती खराब हो<br><br>
कभी तो बात भी खफ़ी<br>कभी सुकूत भी सुखन<br>कभी तो किश्ते ज़ाफ़रां<br>कभी उदासियों का बन<br><br>
सुना है एक उम्र है <br>मुआमलाते दिल की भी<br>विसाले-जाँफ़िजा तो क्या<br>फ़िराके-जाँ-गुसल की भी<br><br>
सो एक रोज क्या हुआ<br>वफ़ा पे बहस छिड़ गई<br>मैं इश्क को अमर कहूं <br>वो मेरी ज़िद से चिढ़ गई<br><br>
मैं इश्क का असीर था<br>वो इश्क को कफ़स कहे<br>कि उम्र भर के साथ को<br>वो बदतर अज़ हवस कहे<br><br>
शजर हजर नहीं कि हम <br>हमेशा पा ब गिल रहें<br>ना ढोर हैं कि रस्सियां<br>गले में मुस्तकिल रहें<br><br>
मोहब्बतें की वुसअतें<br>हमारे दस्तो पा में हैं<br>बस एक दर से निस्बतें<br>सगाने-बावफ़ा में हैं<br><br>
मैं कोई पेन्टिंग नहीं<br>कि एक फ़्रेम में रहूं<br>वही जो मन का मीत हो<br>उसी के प्रेम में रहूं<br><br>
तुम्हारी सोच जो भी हो<br>मैं उस मिजाज की नहीं<br>मुझे वफ़ा से बैर है<br>ये बात आज की नहीं<br><br>
न उसको मुझपे मान था<br>न मुझको उसपे ज़ोम ही<br>जो अहद ही कोई ना हो<br>तो क्या गमे शिकस्तगी<br><br>
सो अपना अपना रास्ता<br>हंसी खुशी बदल दिया<br>वो अपनी राह चल पड़ी<br>मैं अपनी राह चल दिया<br><br>
भली सी एक शक्ल थी<br>भली सी उसकी दोस्ती<br>अब उसकी याद रात दिन<br>नहीं, मगर कभी कभी<br><br>
हुस्न ताम - पूरा शबाब, कहकशां - आकाशगंगा, इज्ने आम - सभी को इजाजत<br>
मुस्तकिल - लगातार, वुसअतें - लम्बाई, चौड़ाई, दस्तो-पा - हाथ, पैर, निस्बतें - संबन्ध<br>
सगाने-बावफ़ा - वफ़ादार कुत्ते, ज़ोम - गुमान, अहद - वचन बद्धता, गमे शिकस्तगी - टूटने का गम<br>
</poem>
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