"इतिहास का दरिया / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर
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02:14, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
इतिहास
जो दरिया बनकर बहता है
कहता है :
चौबीस अगस्त सोलह सौ ईस्वी की शाम
विलियम्स हॉकिंस नाम्के जल-दस्यु ने
'हैक्टर' जहाज़ का लगर था डाला
और सूरज का मुंह
पड़ गया था काला
जहांगीर कौन कवि था
आगरे बैठा
दुआत्शे में
सूरज देखता रहता हो
व्यापारी का चेहरा लगा कर
समुद्री डाकू
आगरा दरबार में झुका
दरिया जानता है
उसके बाद अंग्रेज़ नहीं रुका
फिर पलासी की लड़ाई के बाद
सत्रह-सत्तावन के दिन
काले मुंह वाले सूरज ने देखा
क्लाईव नाम का क्लर्क
दौ सो गोरे सिपाहियों
और तीन सौ काले टट्टुओं के साथ
मुर्शिदाबाद पहुंचा
सड़क के दोनों ओर ये
बिना सर के धड़ अजीब बात है
हर सर धड़ से सर सटा था
फिर भी हर सर
धड़ से कटा था
गर उस दिन
मुर्शिदाबाद के हिन्दियों ने
एक एक पत्त्थर भी मारा होता
तो पांच सौ लाशें बिछ जातीं
जिन्हें इतिहास का दरिया
खाड़ी बंगाल तक बहा ले जाता
एक सदी बीत गई
परंतु इतिहास
मात्र एक तिथि का नाम तो नहीं
जिसे हम अठारह सौ सत्तावन कहते हैं
उद्दात और उदाम दरिया है : इतिहास
जिसकी लहरों संग चलते हैं
मर्दानी रानी
वीर तांतिया
बाबा फरनबीज़
किसी झूलते पलने में लगी
रेशम की डोरी नहीं इतिहास
इतिहास तो फांसी के उस रस्से का नाम है
जिसे ओठों से छूकर
गला पेश करते हैं
भक्त सिंह
राजगुरू
सुखदेव
इतिहास सिर्फ एक भाषण नहीं
उस जन्मसिद्ध अधिकार का नाम है
जिसे छीन लेते हैं
गोखले
आज़ाद
उस फैसले का नाम है इतिहास
जो पहले दर्जे के डिब्बे से उतारे जाने के बाद
उस अंधियारी रात में
अफ्रीका के एक छोटे से स्टेशन पर
ठिठुरते हुए मोहन दास ने किया था
और काले सूरज को वचन दिया था :
ऐ मेर उदास सूरज
तुम्हारी धूप
लौटा लायेंगे हम
इतिहास कोई पोखरा, कोई धुआं
कोई तालाब नहीं
यह तो बहता हुआ दरिया है
जिसमें
बटवारों के दर्द है
जिसके दहानों पर
वक़्त की गर्द है
इतिहास किसी टूटे हुए पहिए का नाम नहीं
सारथी कृष्ण के चलते हुए रथ का नाम है
गोविंद सिंह के ज़फरनामे का नाम है
या फांसी के उस रस्से का नाम है
जिसे सरफरोश ने
अपना गला पेश किया था
उस ख़ामोश फ़ैसले का नाम है
जो एक सर्द रात
गांधी ने किया था
इतिहास तो बहता हुआ दरिया है
इतिहास तो बहता हुआ दरिया है।