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इंधन / इला प्रसाद

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|रचनाकार=इला प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}<poem>यादों के उपलों में 
अब एक भी कच्चा उपला नहीं
 
जो जले देर तक
 
और धुआँ देता रहे
 
कि आकांक्षाओं की नाक में पानी
 
और आँखों में जलन हो
 
गले में ख़राश
 
और थोड़ी देर के लिए ही सही
 
वे खामोश हो जाएं
 
वक़्त की आग ने
 
सब जलाकर राख कर दिया
 
अब नया इंधन जुटाना ही पड़ेगा
 
ज़िंदगी के लिए
 
</poem>
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