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"क्रय / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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क्यों मेरा पहरा देते वे तारक आँखें खोल?
 
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पाषाणों की शय्या पाता,
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उन पर गीले गान बिछाता,
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नित गाता, गाता ही जाता,
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जो निर्झर उसको देगा क्या मेरा जीवन लोल?
 
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22:19, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

चुका पायेगा कैसे बोल!
मेरा निर्धन सा जीवन तेरे वैभव का मोल।
अंचल से मधुभर जो लातीं
मुस्कानों में अश्रु बसातीं
बिन समझे जग पर लुट जातीं
उन कलियों को कैसे ले यह फीकी स्मित बेमोल!
लक्ष्यहीन सा जीवन पाते,
घुल औरों की प्यास बुझाते,
अणुमय हो जगमय हो जाते,
जो वारिद उनमें मत मेरा लघु आँसू-कन घोल!
भिक्षुक बन सौरभ ले आता,
कोने कोने में पहुँचाता,
सूने में संगीत बहाता,
जो समीर उससे मत मेरी निष्फल सांसें तोल!
जो अलसाया विश्व सुलाते,
बुन मोती का जाल उढाते,
थकते पर पलकें न लगाते,
क्यों मेरा पहरा देते वे तारक आँखें खोल?
पाषाणों की शय्या पाता,
उन पर गीले गान बिछाता,
नित गाता, गाता ही जाता,
जो निर्झर उसको देगा क्या मेरा जीवन लोल?