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सम्बन्ध / आभा बोधिसत्त्व

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चलो हम दीया बन जाते हैं
 
और तुम बाती ...
 
हमें सात फेरों या कि कुबूल है से
 
क्या लेना-देना
 
हमें तो बनाए रखना है
 
अपने दिया-बाती के
 
सम्बन्ध को......... मसलन रोशनी
 
हम थोड़ा-थोड़ा जलेंगे
 
हम खो जाएँगे हवा में
 
मिट जाएगी फिर रोशनी भी हमारी
 
पर हम थोड़ी चमक देकर ही जाएँगे
 
न ज़्यादा सही कोई भूला भटका
 
खोज पाएगा कम से कम एक नेम-प्लेट
 
या कोई पढ़ पाएगा ख़त हमारी चमक में ।
 
तो क्या हम दीया बन जाए
 
तुम मंजूर करते हो बाती बनना।
 
मंजूर करते हो मेरे साथ चलना कुछ देर के लिए
 
मेरे साथ जगर-मगर की यात्रा में चलना....कुछ पल।
</poem>
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