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"महमाँनवाज़, वादिये-गुरबत की ख़ाक थी / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर

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महमाँनवाज़, वादिये-गु़रबत की ख़ाक थी।
 
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लाशा किसी ग़रीब का उरियाँ नहीं रहा॥
 
लाशा किसी ग़रीब का उरियाँ नहीं रहा॥
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ज़बाँ का फ़र्क़ हक़ीक़त बदल नहीं सकता।
 
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यह कोई बात नहीं, बुत कहा खुदा नहीं रहा॥
 
यह कोई बात नहीं, बुत कहा खुदा नहीं रहा॥
 
 
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00:23, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

महमाँनवाज़, वादिये-गु़रबत की ख़ाक थी।
लाशा किसी ग़रीब का उरियाँ नहीं रहा॥

आँसू बना जबीं का अरक़ ज़ब्ते-अश्क़ से।
बदला भी ग़म ने भेस तो पिन्हाँ नहीं रहा॥

ज़बाँ का फ़र्क़ हक़ीक़त बदल नहीं सकता।
यह कोई बात नहीं, बुत कहा खुदा नहीं रहा॥