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00:28, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

चान्दमारी एक ख़ास जगह होती है
जहाँ खड़े किये गये नकली पुतलों को
गोली मारी जाती है

कोई न कोई होता ही है
निशाने की जद में

इधर कला और संस्कृति और साहित्य के
प्रभुतासम्पन्न केन्द्र विकसित किये जा रहे
चांदमारी के लिए
शिकार की खोज जारी रहती है
ख़ास किस्म का वातावरण
हवा और धूप भी
खास कोण से बहती और उतरती
एक खास किस्म के वैचारिक सद्‍भाव पर दिया जाता बल
प्रकारांतर से एक खास लक्ष्य की ओर रहते अग्रसर

यहाँ जब सम्पन्न होती चांदमारी
गोलियों की आवाज़ें सुनाई नहीं देतीं
निहायत ही ख़ास ढंग से मारा जाता कोई
किसी को आभास तक नहीं होता
और आँखें निकाल ले जाते वे
वे इसे नयी दृष्टि का विकसित होना कहते हैं

वे यकीन नहीं करते
गोली मार देने जैसे तरीकों में
वे भाषा में सेंध लगाते हैं
और निर्वासित करते किसी को
भाषा के जीवंत कालखंड से
इस चांदमारी में
जिस्म पर नहीं आती कोई खरोंच
लेकिन बहुत से विचार हताहत होते हैं

यहाँ से गुज़र कर भी
नयी शक्ल में आ रहे
कुछ विचार।