"बिरजित ख़ान / उदय प्रकाश" के अवतरणों में अंतर
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हिंदी में हम | हिंदी में हम | ||
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जैसे बिरजित ख़ान | जैसे बिरजित ख़ान | ||
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कंधार के मैदान में | कंधार के मैदान में | ||
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अपनी भेड़ों के साथ जंगल, खेत, दर्रों और पहाड़ों में भटकता | अपनी भेड़ों के साथ जंगल, खेत, दर्रों और पहाड़ों में भटकता | ||
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अपनी ही भाषा के भूगोल में | अपनी ही भाषा के भूगोल में | ||
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बिरजित ख़ान | बिरजित ख़ान | ||
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बिरजित ख़ान...... | बिरजित ख़ान...... | ||
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..........गड़रिया | ..........गड़रिया | ||
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रात के मैदान में चंद्रमा की परछाईं में | रात के मैदान में चंद्रमा की परछाईं में | ||
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सोया हुआ बिरजित ख़ान | सोया हुआ बिरजित ख़ान | ||
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नींद में डूबी थकी भेड़ों और रुई की गठरियों की तरह | नींद में डूबी थकी भेड़ों और रुई की गठरियों की तरह | ||
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दूर-दूर हिलते-डुलते मेमनों के बीच | दूर-दूर हिलते-डुलते मेमनों के बीच | ||
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खुद जैसे धुंधला-सा | खुद जैसे धुंधला-सा | ||
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कोई एक चंद्रमा | कोई एक चंद्रमा | ||
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बिरजित ख़ान | बिरजित ख़ान | ||
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अचानक | अचानक | ||
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रात के आकाश में टूटती उल्काओं की तरह आते हैं | रात के आकाश में टूटती उल्काओं की तरह आते हैं | ||
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पश्चिम से बमबार | पश्चिम से बमबार | ||
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बिजलियों की तरह गरजते | बिजलियों की तरह गरजते | ||
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लहूलुहान माथा, टूटी हुई बांह, चिथड़ी हुई आत्मा | लहूलुहान माथा, टूटी हुई बांह, चिथड़ी हुई आत्मा | ||
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........ | ........ | ||
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अब सिर्फ़ एक बेचैन कंबंध भर है | अब सिर्फ़ एक बेचैन कंबंध भर है | ||
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बिरजित ख़ान | बिरजित ख़ान | ||
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खून में नहाए मेमने | खून में नहाए मेमने | ||
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जैसे गोधूलि की अंतिम किरणों में रंगी हुई | जैसे गोधूलि की अंतिम किरणों में रंगी हुई | ||
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बद्दलों की लाल लाल लाल लाल गठरियां | बद्दलों की लाल लाल लाल लाल गठरियां | ||
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मेमनों और भेड़ों के शवों के बीच | मेमनों और भेड़ों के शवों के बीच | ||
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चीखता है बिरजित ख़ान | चीखता है बिरजित ख़ान | ||
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जैसे चीखते हैं हम | जैसे चीखते हैं हम | ||
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अपनी ही भाषा के भीतर घायल | अपनी ही भाषा के भीतर घायल | ||
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हिंदी में हम | हिंदी में हम | ||
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जैसे कंधार में बिरजित ख़ान | जैसे कंधार में बिरजित ख़ान | ||
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जैसे बामियान में बुद्ध | जैसे बामियान में बुद्ध | ||
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जैसे नज़फ़ में तितली | जैसे नज़फ़ में तितली | ||
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जैसे दज़ला में फूल | जैसे दज़ला में फूल | ||
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फ़रात में कश्ती | फ़रात में कश्ती | ||
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जैसे गुजरात में | जैसे गुजरात में | ||
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वली दकनी | वली दकनी | ||
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अपनी ही भाषा के भूगोल में | अपनी ही भाषा के भूगोल में | ||
हम सब बिरजित ख़ान | हम सब बिरजित ख़ान | ||
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गड़रिया!!!! | गड़रिया!!!! | ||
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'''(बिरजित ख़ान उस गड़रिये का नाम था, जो अफ़गानिस्तान में अमेरिकी बमबारी के दौरान अपनी भेड़ों के साथ घायल हुआ था। उस हाल में भी वह अपने लिए नहीं, अपने मेमनों और भेड़ों के लिए चीख़ रहा था। इस घटना की ख़बर टीवी या अख़बारों ने नहीं, मानवाधिकारों और शान्ति के पक्ष में पत्रकारिता कर रहे राबर्ट फिस्क ने दी थी।)''' | '''(बिरजित ख़ान उस गड़रिये का नाम था, जो अफ़गानिस्तान में अमेरिकी बमबारी के दौरान अपनी भेड़ों के साथ घायल हुआ था। उस हाल में भी वह अपने लिए नहीं, अपने मेमनों और भेड़ों के लिए चीख़ रहा था। इस घटना की ख़बर टीवी या अख़बारों ने नहीं, मानवाधिकारों और शान्ति के पक्ष में पत्रकारिता कर रहे राबर्ट फिस्क ने दी थी।)''' | ||
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00:49, 11 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
(स्व. शैलेश मटियानी की स्मृति में )
हिंदी में हम
जैसे बिरजित ख़ान
कंधार के मैदान में
अपनी भेड़ों के साथ जंगल, खेत, दर्रों और पहाड़ों में भटकता
अपनी ही भाषा के भूगोल में
बिरजित ख़ान
बिरजित ख़ान......
..........गड़रिया
रात के मैदान में चंद्रमा की परछाईं में
सोया हुआ बिरजित ख़ान
नींद में डूबी थकी भेड़ों और रुई की गठरियों की तरह
दूर-दूर हिलते-डुलते मेमनों के बीच
खुद जैसे धुंधला-सा
कोई एक चंद्रमा
बिरजित ख़ान
अचानक
रात के आकाश में टूटती उल्काओं की तरह आते हैं
पश्चिम से बमबार
बिजलियों की तरह गरजते
लहूलुहान माथा, टूटी हुई बांह, चिथड़ी हुई आत्मा
........
अब सिर्फ़ एक बेचैन कंबंध भर है
बिरजित ख़ान
खून में नहाए मेमने
जैसे गोधूलि की अंतिम किरणों में रंगी हुई
बद्दलों की लाल लाल लाल लाल गठरियां
मेमनों और भेड़ों के शवों के बीच
चीखता है बिरजित ख़ान
जैसे चीखते हैं हम
अपनी ही भाषा के भीतर घायल
हिंदी में हम
जैसे कंधार में बिरजित ख़ान
जैसे बामियान में बुद्ध
जैसे नज़फ़ में तितली
जैसे दज़ला में फूल
फ़रात में कश्ती
जैसे गुजरात में
वली दकनी
अपनी ही भाषा के भूगोल में
हम सब बिरजित ख़ान
.........
.............
गड़रिया!!!!
(बिरजित ख़ान उस गड़रिये का नाम था, जो अफ़गानिस्तान में अमेरिकी बमबारी के दौरान अपनी भेड़ों के साथ घायल हुआ था। उस हाल में भी वह अपने लिए नहीं, अपने मेमनों और भेड़ों के लिए चीख़ रहा था। इस घटना की ख़बर टीवी या अख़बारों ने नहीं, मानवाधिकारों और शान्ति के पक्ष में पत्रकारिता कर रहे राबर्ट फिस्क ने दी थी।)