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"अक़्स-ए-ख़ुशबू हूँ / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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अक़्स-ए-खुशबू हूँ बिखरने से ना रोके कोई<br>
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काँप उठती हूँ मैं सोच कर तन्हाई में
और बिखर जाऊँ तो, मुझ को ना समेटे कोई<br><br>
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मेरे चेहरे पर तेरा नाम न पढ़ ले कोई
  
काँप उठती हूँ मैं सोच कर तनहाई में<br>
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जिस तरह ख़्वाब हो गए मेरे रेज़ा-रेज़ा
मेरे चेहरे पर तेरा नाम ना पढ़ ले कोई<br><br>
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इस तरह से, कभी टूट कर, बिखरे कोई
  
जिस तरह ख़्वाब हो गए मेरे रेज़ा रेज़ा<br>
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अब तो इस राह से वो शख़्स गुजरता भी नहीं
इस तरह से, कभी टूट कर, बिखरे कोई<br><br>
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अब किस उम्मीद पर दरवाजे से झाँके कोई
  
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कोई आहट, कोई आवाज़, कोई छाप नहीं
अब किस उम्मीद पर दरवाजे से झांके कोई<br><br>
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दिल की गलियाँ बड़ी सुनसान है आए कोई
 
दिल की गलियाँ बड़ी सुनसान है आए कोई
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19:45, 11 नवम्बर 2009 का अवतरण

अक़्स-ए-खुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई
और बिखर जाऊँ तो, मुझ को न समेटे कोई

काँप उठती हूँ मैं सोच कर तन्हाई में
मेरे चेहरे पर तेरा नाम न पढ़ ले कोई

जिस तरह ख़्वाब हो गए मेरे रेज़ा-रेज़ा
इस तरह से, कभी टूट कर, बिखरे कोई

अब तो इस राह से वो शख़्स गुजरता भी नहीं
अब किस उम्मीद पर दरवाजे से झाँके कोई

कोई आहट, कोई आवाज़, कोई छाप नहीं
दिल की गलियाँ बड़ी सुनसान है आए कोई