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"कानन दूसरो नाम सुनै नहीं / ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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<poem>कानन दूसरो नाम सुनै नहीं, एक ही रंग रंग्यो यह डोरो।
 
<poem>कानन दूसरो नाम सुनै नहीं, एक ही रंग रंग्यो यह डोरो।
धोखेहु दूसरो नाम , रसना मुख काहिलाहल बोरो॥
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धोखेहु दूसरो नाम कढ़ै, रसना मुख काढ़ि हलाहल बोरो॥
'ठाकुर चित्त की वृत्ति यही, हम कैसें टेक तजैं नहिं भोरो।
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'ठाकुर' चित्त की वृत्ति यही, हम कैसेहूँ टेक तजैं नहिं भोरो।
बावरी वे अंखियां जरि जांहिं, जो सांवरो छवि निहारतिं गोरो॥
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बावरी वे अँखियाँ जरि जाहिं, जो साँवरो छाँड़ि निहारत गोरो॥
  
  
 
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21:32, 13 नवम्बर 2009 का अवतरण

कानन दूसरो नाम सुनै नहीं, एक ही रंग रंग्यो यह डोरो।
धोखेहु दूसरो नाम कढ़ै, रसना मुख काढ़ि हलाहल बोरो॥
'ठाकुर' चित्त की वृत्ति यही, हम कैसेहूँ टेक तजैं नहिं भोरो।
बावरी वे अँखियाँ जरि जाहिं, जो साँवरो छाँड़ि निहारत गोरो॥