"कोई फर्क नहीं पड़ता / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर
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अक्सर भटकता हुआ मैं पहुँच जाता हूँ उस तन्हाई में | अक्सर भटकता हुआ मैं पहुँच जाता हूँ उस तन्हाई में | ||
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जहाँ तुम रूठे से बैठे रहते हो। | जहाँ तुम रूठे से बैठे रहते हो। | ||
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और जब भी करता हूँ कोशिश मनाने की | और जब भी करता हूँ कोशिश मनाने की | ||
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गुम हो जाते हो न जाने कहाँ ! | गुम हो जाते हो न जाने कहाँ ! | ||
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उस ठहरे वक्त का इंतजार मैं | उस ठहरे वक्त का इंतजार मैं | ||
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करता रहा हूँ आज तक | करता रहा हूँ आज तक | ||
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जब तुम आकर मेरी तन्हाई में | जब तुम आकर मेरी तन्हाई में | ||
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ठहर जाओगे | ठहर जाओगे | ||
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और मैं मर जाऊंगा | और मैं मर जाऊंगा | ||
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एक सुखांत नाटक की तरह हो जाएगा अंत | एक सुखांत नाटक की तरह हो जाएगा अंत | ||
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मेरी जिंदगी का । | मेरी जिंदगी का । | ||
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जो मैं बताऊँ झूठ | जो मैं बताऊँ झूठ | ||
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तो लोग बहाएँगे आंसू | तो लोग बहाएँगे आंसू | ||
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जो बताऊँ सच | जो बताऊँ सच | ||
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तो कहेंगे दीवाना , मनचला ..... | तो कहेंगे दीवाना , मनचला ..... | ||
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तुम चले गए बिना बताए | तुम चले गए बिना बताए | ||
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और अब मिलते भी नहीं कि करूँ शिकायत | और अब मिलते भी नहीं कि करूँ शिकायत | ||
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तुम्हारा जाना | तुम्हारा जाना | ||
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हो सकता है, जरुरत हो तुम्हारी | हो सकता है, जरुरत हो तुम्हारी | ||
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लेकिन मैं तो रह गया न अकेला | लेकिन मैं तो रह गया न अकेला | ||
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और फिर कभी जो मिल जाते हो तन्हाई में | और फिर कभी जो मिल जाते हो तन्हाई में | ||
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तो रूठी, चिढी, मुरझाई सी | तो रूठी, चिढी, मुरझाई सी | ||
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और आता हूँ पास मनाने को | और आता हूँ पास मनाने को | ||
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हो जाते हो गायब। | हो जाते हो गायब। | ||
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नहीं थका हूँ मैं अबतक | नहीं थका हूँ मैं अबतक | ||
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भटकता हूँ अब भी दिन-रात , सुबह-शाम | भटकता हूँ अब भी दिन-रात , सुबह-शाम | ||
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मिलता रहता हूँ अपनी तन्हाई में तुमसे अक्सर , | मिलता रहता हूँ अपनी तन्हाई में तुमसे अक्सर , | ||
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इसका तुम्हे अच्छा लगे या बुरा | इसका तुम्हे अच्छा लगे या बुरा | ||
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कोई फर्क नहीं पड़ता मुझपे । | कोई फर्क नहीं पड़ता मुझपे । | ||
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19:53, 15 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
अक्सर भटकता हुआ मैं पहुँच जाता हूँ उस तन्हाई में
जहाँ तुम रूठे से बैठे रहते हो।
और जब भी करता हूँ कोशिश मनाने की
गुम हो जाते हो न जाने कहाँ !
उस ठहरे वक्त का इंतजार मैं
करता रहा हूँ आज तक
जब तुम आकर मेरी तन्हाई में
ठहर जाओगे
और मैं मर जाऊंगा
एक सुखांत नाटक की तरह हो जाएगा अंत
मेरी जिंदगी का ।
जो मैं बताऊँ झूठ
तो लोग बहाएँगे आंसू
जो बताऊँ सच
तो कहेंगे दीवाना , मनचला .....
तुम चले गए बिना बताए
और अब मिलते भी नहीं कि करूँ शिकायत
तुम्हारा जाना
हो सकता है, जरुरत हो तुम्हारी
लेकिन मैं तो रह गया न अकेला
और फिर कभी जो मिल जाते हो तन्हाई में
तो रूठी, चिढी, मुरझाई सी
और आता हूँ पास मनाने को
हो जाते हो गायब।
नहीं थका हूँ मैं अबतक
भटकता हूँ अब भी दिन-रात , सुबह-शाम
मिलता रहता हूँ अपनी तन्हाई में तुमसे अक्सर ,
इसका तुम्हे अच्छा लगे या बुरा
कोई फर्क नहीं पड़ता मुझपे ।