भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बच्चू बाबू / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
  
 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
 +
 +
 +
बच्चू बाबू एम.ए. करके सात साल झख मारे
 +
 +
खेत बेंचकर पढ़े पढ़ाई उल्लू बने बिचारे
 +
 +
 +
कितनी अर्ज़ी दिए न जाने कितना फूँके तापे
 +
 +
कितनी धूल न जाने फाँके कितना रस्ता नापे
 +
 +
 +
लाई चना कहीं खा लेते कहीं बेंच पर सोते
 +
 +
बच्चू बाबू हूए छुहारा झोला ढोते-ढोते
 +
 +
 +
उमर अधिक हो गई नौकरी कहीं नहीं मिल पाई
 +
 +
चौपट हुई गिरस्ती बीबी देने लगी दुहाई
 +
 +
 +
बाप कहे आवारा भाई कहने लगे बिलल्ला
 +
 +
नाक फुला भौजाई कहती मरता नहीं निठल्ला
 +
 +
 +
खून ग़‍रम हो गया एक दिन कब तक करते फाका
 +
 +
लोक लाज सब छोड़-छाड़कर लगे डालने डाका
 +
 +
 +
बड़ा रंग है, बड़ा मान है बरस रहा है पैसा
 +
 +
सारा गाँव यही कहता है बेटा हो तो ऐसा।

23:35, 10 दिसम्बर 2006 का अवतरण

लेखक: कैलाश गौतम

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*


बच्चू बाबू एम.ए. करके सात साल झख मारे

खेत बेंचकर पढ़े पढ़ाई उल्लू बने बिचारे


कितनी अर्ज़ी दिए न जाने कितना फूँके तापे

कितनी धूल न जाने फाँके कितना रस्ता नापे


लाई चना कहीं खा लेते कहीं बेंच पर सोते

बच्चू बाबू हूए छुहारा झोला ढोते-ढोते


उमर अधिक हो गई नौकरी कहीं नहीं मिल पाई

चौपट हुई गिरस्ती बीबी देने लगी दुहाई


बाप कहे आवारा भाई कहने लगे बिलल्ला

नाक फुला भौजाई कहती मरता नहीं निठल्ला


खून ग़‍रम हो गया एक दिन कब तक करते फाका

लोक लाज सब छोड़-छाड़कर लगे डालने डाका


बड़ा रंग है, बड़ा मान है बरस रहा है पैसा

सारा गाँव यही कहता है बेटा हो तो ऐसा।