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खूब-खूब हुआ काव्य-पाठ
खूब-खूब सराहा गया एक दूसरे को जमकर
खूब-खूब जगा और जगाया गया आत्मबोध
श्रोता चुपचाप रहे की शायद कहीं हों उनके भी शब्द
उनका भी कोई बिम्ब हो कहीं
कहीं कोई जानी- पहचानी लय उनकी हो अपनी
या फिर कोई बात
घर-घाट, बाजार-हाट, लूट-पाट भी
कुछ भी नहीं था कहीं केवल काव्य-पाठ
काव्य-पाठ केवल था कवियों की भाषा में
कवियों की बातचीत की तरह
यहाँ तक की समय भी अनुपस्थित था
वहाँ
उनके बीच