"मिट्टी और फूल (कविता) / नरेन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा |संग्रह=मिट्टी और फूल / नरेन्द्र …) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
− | |||
<poem> | <poem> | ||
वह कहती, ’हैं तृण तरु-प्राणी जितने, मेरे बेटा बेटी!’ | वह कहती, ’हैं तृण तरु-प्राणी जितने, मेरे बेटा बेटी!’ | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 14: | ||
मैं मिट्टी हूँ, मेरे भीतर सोना-रूपा, नौरतन भरे! | मैं मिट्टी हूँ, मेरे भीतर सोना-रूपा, नौरतन भरे! | ||
मैं सूखी हूँ, पर मुझसे ही फल-फूल और बन-बाग हरे! | मैं सूखी हूँ, पर मुझसे ही फल-फूल और बन-बाग हरे! | ||
+ | मैं पाँवों के नीचे, मैं ही हूँ पर पर्वत पर की चोटी! | ||
+ | मेरी छाती पर शत पर्वत, मैं मिट्टी हूँ सब से छोटी! | ||
+ | मैं मिट्टी हूँ--अंधी मिट्टी, पर मुकुल-फूल मेरी आँखें! | ||
+ | मैं मिट्टी हूँ--जड़ मिट्टी हूँ, पर पत्रों में मेरी पाँखें! | ||
+ | मैं मिट्टी हूँ--मैं वर्णहीन, पर निकले मुझसे वर्ण सकल! | ||
+ | मेरे रस में प्रसून रंजित, रंजित नव अंकुर, पल्लव-दल! | ||
+ | मैं गंधहीन, | ||
</poem> | </poem> |
16:39, 1 दिसम्बर 2009 का अवतरण
वह कहती, ’हैं तृण तरु-प्राणी जितने, मेरे बेटा बेटी!’
ऊपर नीला आकाश और नीचे सोना-माटी लेटी!
’मैं सब कुछ सहती रहती हूँ, हो धूप-ताप वर्षा-पाला,
पर मेरे भीतर छिपी हुई बिन बुझी एक भीषण ज्वाला!
मैं मिट्टी हूँ, मैं सब कुछ सहती रहती हूँ चुपचाप पड़ी,
हिम-आतप में गल और सूख पर नहीं आज तक गली सड़ी!
मैं मिट्टी हूँ, मेरे भीतर सोना-रूपा, नौरतन भरे!
मैं सूखी हूँ, पर मुझसे ही फल-फूल और बन-बाग हरे!
मैं पाँवों के नीचे, मैं ही हूँ पर पर्वत पर की चोटी!
मेरी छाती पर शत पर्वत, मैं मिट्टी हूँ सब से छोटी!
मैं मिट्टी हूँ--अंधी मिट्टी, पर मुकुल-फूल मेरी आँखें!
मैं मिट्टी हूँ--जड़ मिट्टी हूँ, पर पत्रों में मेरी पाँखें!
मैं मिट्टी हूँ--मैं वर्णहीन, पर निकले मुझसे वर्ण सकल!
मेरे रस में प्रसून रंजित, रंजित नव अंकुर, पल्लव-दल!
मैं गंधहीन,