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"क्या हुआ हुस्न है हमसफ़र या नहीं / ख़ुमार बाराबंकवी" के अवतरणों में अंतर
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ग़म छुपाने से छुप जाए ऐसा नहीं | ग़म छुपाने से छुप जाए ऐसा नहीं | ||
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छोड़ भी दे अब मेरा साथ ऐ ज़िन्दगी | छोड़ भी दे अब मेरा साथ ऐ ज़िन्दगी | ||
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तूने तौबा तो कर ली मगर ऐ 'ख़ुमार' | तूने तौबा तो कर ली मगर ऐ 'ख़ुमार' |
19:47, 12 दिसम्बर 2009 का अवतरण
क्या हुआ हुस्न है हमसफ़र या नहीं
इश्क़ मंज़िल ही मंज़िल है रस्ता नहीं
ग़म छुपाने से छुप जाए ऐसा नहीं
बेख़बर तूने आईना देखा नहीं
दो परिंदे उड़े आँख नम हो गई
आज समझा के मैं तुझको भूला नहीं
अहले-मंज़िल अभी से न मुझ पर हँसो
पाँव टूटे हैं दिल मेरा टूटा नहीं
तर्के-मय को अभी दिन ही कितने हुए
और कुछ कहा मय को ज़ाहिद तो अच्छा नहीं
छोड़ भी दे अब मेरा साथ ऐ ज़िन्दगी
है नदामत मुझे तुझसे शिकवा नहीं
तूने तौबा तो कर ली मगर ऐ 'ख़ुमार'
तुझको रहमत पर शायद भरोसा नहीं