Changes

निरंजन धन तुम्हरो दरबार / कबीर

16 bytes added, 13:45, 13 दिसम्बर 2009
<<poem>
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।<br />
जहां न तनिक न्याय विचार ।।<br />
कहत कबीर फकीर पुकारी, जग उल्टा व्यवहार ।।<br />
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।<br />
</poem>