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निरंजन धन तुम्हरो दरबार / कबीर
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13:45, 13 दिसम्बर 2009
<<poem>
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।<br />
जहां न तनिक न्याय विचार ।।<br />
कहत कबीर फकीर पुकारी, जग उल्टा व्यवहार ।।<br />
निरंजन धन तुम्हरो दरबार ।<br />
</poem>
RAM SARAN YADAV
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