"रचना क्या है?.. / हिमांशु पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
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− | + | रचना को मैं रोष शब्द का विषय बनाना नहीं चाहता | |
+ | ’दृढ़ आशा का सम्बल है’ रचना तो उसका स्वागत है । | ||
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+ | ’झुकी पेशियाँ, डूबा चेहरा’ ये रचना का विषय नहीं है | ||
+ | ’मानवता पर छाया कुहरा’ ये रचना का विषय नहीं है | ||
+ | विषय बनाना हो तो लाओ हृदय सूर्य की भाव रश्मियाँ | ||
+ | ’दिन पर अंधेरे का पहरा’ ये रचना का विषय नहीं है । | ||
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+ | रचना की एक देंह रचो जब कर दो अपना भाव समर्पण | ||
+ | उसके हेतु समर्पित कर दो, ज्ञान और अनुभव का कण-कण | ||
+ | तब जो रचना देंह बनेगी, वह पवित्र सुन्दर होगी | ||
+ | पावनता बरसायेगी रचना प्रतिपल क्षण-क्षण, प्रतिक्षण । | ||
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12:54, 14 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
"रचना क्या है, इसे समझने बैठ गया मतवाला मन
कैसे रच देता है कोई, रचना का उर्जस्वित तन ।
लगा सोचने क्या यह रचना, किसी हृदय की वाणी है,
अथवा प्रेम-तत्व से निकली जन-जन की कल्याणी है,
क्या रचना आक्रोश मात्र के अतल रोष का प्रतिफल है
या फिर किसी हारते मन की दृढ़ आशा का सम्बल है ।
’किसी हृदय की वाणी है’रचना, तो उसका स्वागत है
’जन-जन की कल्याणी है’ रचना, तो उसका स्वागत है
रचना को मैं रोष शब्द का विषय बनाना नहीं चाहता
’दृढ़ आशा का सम्बल है’ रचना तो उसका स्वागत है ।
’झुकी पेशियाँ, डूबा चेहरा’ ये रचना का विषय नहीं है
’मानवता पर छाया कुहरा’ ये रचना का विषय नहीं है
विषय बनाना हो तो लाओ हृदय सूर्य की भाव रश्मियाँ
’दिन पर अंधेरे का पहरा’ ये रचना का विषय नहीं है ।
रचना की एक देंह रचो जब कर दो अपना भाव समर्पण
उसके हेतु समर्पित कर दो, ज्ञान और अनुभव का कण-कण
तब जो रचना देंह बनेगी, वह पवित्र सुन्दर होगी
पावनता बरसायेगी रचना प्रतिपल क्षण-क्षण, प्रतिक्षण ।