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"रचना क्या है?.. / हिमांशु पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

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मुझसे मेरे अन्तःकरण का स्वत्व
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"रचना क्या है, इसे समझने बैठ गया मतवाला मन
गिरवी न रखा जा सकेगा
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कैसे रच देता है कोई, रचना का उर्जस्वित तन ।
भले ही मेरे स्वप्न,
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मेरी आकांक्षायें
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सौंप दी जाँय किसी बधिक के हाँथों
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कम से कम का-पुरुष तो न कहा जाउंगा
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लगा सोचने क्या यह रचना, किसी हृदय की वाणी है,
और न ऐसा दीप ही
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अथवा प्रेम-तत्व से निकली जन-जन की कल्याणी है,
जिसका अन्तर ही ज्योतिर्मय नहीं,
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क्या रचना आक्रोश मात्र के अतल रोष का प्रतिफल है
फिर भले ही
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या फिर किसी हारते मन की दृढ़ आशा का सम्बल है ।
खुशियाँ अनन्त काल के लिये
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सुला दी जायेंगी किसी काल कोठरी में,
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या कि चेतना का अजस्र संगीत
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मूक हो जायेगा निरन्तर,
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या मन का मुकुर चूर-चूर हो जायेगा
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क्षण-क्षण प्रहारों से
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मैं समर्पित साधना की राह लूँगा
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’किसी हृदय की वाणी है’रचना, तो उसका स्वागत है
नियम-संयम से चलूँगा-
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’जन-जन की कल्याणी है’ रचना, तो उसका स्वागत है
यदि चल सकूँगा
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रचना को मैं रोष शब्द का विषय बनाना नहीं चाहता
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’दृढ़ आशा का सम्बल है’ रचना तो उसका स्वागत है ।
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’झुकी पेशियाँ, डूबा चेहरा’ ये रचना का विषय नहीं है
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’मानवता पर छाया कुहरा’ ये रचना का विषय नहीं है
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विषय बनाना हो तो लाओ हृदय सूर्य की भाव रश्मियाँ
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’दिन पर अंधेरे का पहरा’ ये रचना का विषय नहीं है ।
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रचना की एक देंह रचो जब कर दो अपना भाव समर्पण
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उसके हेतु समर्पित कर दो, ज्ञान और अनुभव का कण-कण
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तब जो रचना देंह बनेगी, वह पवित्र सुन्दर होगी
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पावनता बरसायेगी रचना प्रतिपल क्षण-क्षण, प्रतिक्षण ।  
 
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12:54, 14 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण


"रचना क्या है, इसे समझने बैठ गया मतवाला मन
कैसे रच देता है कोई, रचना का उर्जस्वित तन ।

लगा सोचने क्या यह रचना, किसी हृदय की वाणी है,
अथवा प्रेम-तत्व से निकली जन-जन की कल्याणी है,
क्या रचना आक्रोश मात्र के अतल रोष का प्रतिफल है
या फिर किसी हारते मन की दृढ़ आशा का सम्बल है ।

’किसी हृदय की वाणी है’रचना, तो उसका स्वागत है
’जन-जन की कल्याणी है’ रचना, तो उसका स्वागत है
रचना को मैं रोष शब्द का विषय बनाना नहीं चाहता
’दृढ़ आशा का सम्बल है’ रचना तो उसका स्वागत है ।

’झुकी पेशियाँ, डूबा चेहरा’ ये रचना का विषय नहीं है
’मानवता पर छाया कुहरा’ ये रचना का विषय नहीं है
विषय बनाना हो तो लाओ हृदय सूर्य की भाव रश्मियाँ
’दिन पर अंधेरे का पहरा’ ये रचना का विषय नहीं है ।

रचना की एक देंह रचो जब कर दो अपना भाव समर्पण
उसके हेतु समर्पित कर दो, ज्ञान और अनुभव का कण-कण
तब जो रचना देंह बनेगी, वह पवित्र सुन्दर होगी
पावनता बरसायेगी रचना प्रतिपल क्षण-क्षण, प्रतिक्षण ।