भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कल के नाम / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 44: पंक्ति 44:
 
कभी गए तो........।
 
कभी गए तो........।
  
भाषा-नवम्बर-दिसम्बर २००७ से साभार
+
'''‘भाषा’के नवम्बर-दिसम्बर २००७ से साभार
 
+
'''''
नेपाली अनुवाद-भोली को नाममा
+
::भोली को नाममा
वैद्यनाथ उपाध्याय
+
[नेपाली अनुवाद - वैद्यनाथ उपाध्याय]
  
 
हरियो दूबो मा
 
हरियो दूबो मा

15:17, 17 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

कल के नाम


हरियाली दूब पर
दो पल
बैठे रहे उस दिन
मुखर पन्ने
ढीले पाँव
थकी चप्पलें
दृश्य से अदृश्य - छुअन
एक चुप्पी-वाचाल
निसर्ग के गदबदाए रंग
धुली धूप
बिलछती हवा
मौन संवाद करते
अंबर ऋतंभरा।

बीच का
खिलता अन्धकार (ऊपर से नीचे)
खग कलरव (नीचे से ऊपर)
पानी का मचलता गीलापन (परस्पर)
जुड़ाव भरता रहा
अंतःसाक्षी - सा, अभिषेक का।
अगली ही प्रस्तुति का
कोई अक्षत-क्षत
कोई अक्षत-रोली
मुकुट और नूपुर के बीच की
मेखला के
पाँच कुमकुमी रेशमबंध
सहलाएगी
रूप, रस, गन्ध,
स्पर्श और शब्द,
पंच-तंत्र में, पंचाश्रम में
अधिष्ठित होंगे।
पंच-पोर पर
गिन सकते हो
खोल हथेली
भूल किसी दिन
कभी गए तो........।

‘भाषा’के नवम्बर-दिसम्बर २००७ से साभार

भोली को नाममा
[नेपाली अनुवाद - वैद्यनाथ उपाध्याय]

हरियो दूबो मा
दुई पल
बसि रह्यौं त्यो दिन
मुखर पनहरू
ढीला पाउ
थाकेका चप्पलहरू
दृश्य देकि अदृश्य-छुवाई
एक सुनसान-वाचाल
निसर्ग को खजमजिए को रंग
नुहाए को धाम
बुझ्ने हावा
मौन संवाद गर्दे
अंबर ऋतंभरा।

बीच को
फ़क्रिदों अँध्यारो [माथिबाट तल]
खग कलरव [तलबाट माथि]
पानी को सचल गीलोपना [आपसमा]
संलग्नआ भदैं रह्यो
अंत साक्षी-जस्तै अभिषेक को।

अधिल्लो प्रस्तुतिको
कुनै अक्षत-रोचन
मुकुट र नूपुर को बीच को
मेखला को
पाँच केसरिया रेशमीबाँध।

सुमसुम्याउनेछ
रूप, रस, गंध,
स्पर्श र शब्द
पंच-तंत्रमा, पंचाश्रयमा
अधिष्टित हुनेछ।


पाँच औंलामा
गन्न सक्छौ
खोलेर हत्केला
कुनै दिन
भूल्यौ भने....।