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"अब भी / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर

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'''रचनाकाल : 1993'''
  
'''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रविन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।'''
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'''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि [[कुँअर रवीन्द्र]] के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।'''
 
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02:31, 18 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

छिपाने लायक कुछ भी नहीं है
फिर भी छिपाते जा रहे हैं हम
जैसे प्यार

तोड़ने लायक कुछ भी नहीं है
फिर भी तोड़ते जा रहे है हम
जैसे फूल

उठाने लायक कुछ भी नहीं है
फिर भी उठाते जा रहे हैं हम
जैसे आसमान

देने लायक कुछ भी नहीं है
फिर भी देते जा रहे हैं हम
जैसे जान

छिपाने के लिए बहुत-बहुत है नफरत
बहुत-बहुत अहंकार है तोड़ने के लिए
उठाने के लिए कम कहाँ हैं नैतिकताओं के बोझ
देने के लिए इम्तहानों की कमी कहाँ है
ज़िन्दगी में हमारी

रचनाकाल : 1993

शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।