"घाव / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह }} {{KKCatKavita}} <poem> ऐसे मत छुओ घाव को घ…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 32: | पंक्ति 32: | ||
− | '''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर | + | '''शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि [[कुँअर रवीन्द्र]] के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।''' |
</poem> | </poem> |
02:35, 18 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
ऐसे मत छुओ घाव को
घाव को पहले मन में बसाओ
उतारो धीरे-धीरे हाथों में
उंगलियों तक ले आओ धीरे-धीरे
छुओ, फिर छुओ घाव को घाव की तरह
आँखों से कहाँ दिखता है घाव
अनुभव में होता है वह
शब्द की तरह कविता में आने से पहले
कविता में शब्द की राह से आते अनुभव की तरह
घाव में उतरो
ऐसे मत छुओ घाव को
तीमारदार स्थितियों
तुम्हारी मुस्कान कहाँ चली गई
कहाँ चला गया तुम्हारा संस्पर्श
कहाँ गया वह बोध
तुम्हे संस्पर्श में जन्मता है जो
घाव को छूने से पहले उसे वापस लाओ
ऐसे मत छुओ
कि घाव है आखिर
रचनाकाल : 1991 विदिशा
शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।