भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"झरना (कविता) / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (झरना. / जयशंकर प्रसाद का नाम बदलकर झरना (कविता) / जयशंकर प्रसाद कर दिया गया है) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=झरना / जयशंकर प्रसाद | |संग्रह=झरना / जयशंकर प्रसाद | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी | ||
+ | न हैं उत्पात, छटा हैं छहरी | ||
+ | मनोहर झरना। | ||
− | मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी | + | कठिन गिरि कहाँ विदारित करना |
− | + | बात कुछ छिपी हुई हैं गहरी | |
− | + | मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी | |
− | + | कल्पनातीत काल की घटना | |
− | + | हृदय को लगी अचानक रटना | |
− | + | देखकर झरना। | |
− | कल्पनातीत काल की घटना | + | प्रथम वर्षा से इसका भरना |
− | + | स्मरण हो रहा शैल का कटना | |
− | + | कल्पनातीत काल की घटना | |
− | + | कर गई प्लावित तन मन सारा | |
− | + | एक दिन तब अपांग की धारा | |
− | + | हृदय से झरना- | |
− | कर गई प्लावित तन मन सारा | + | बह चला, जैसे दृगजल ढरना। |
− | + | प्रणय वन्या ने किया पसारा | |
− | + | कर गई प्लावित तन मन सारा | |
− | + | प्रेम की पवित्र परछाई में | |
− | + | लालसा हरित विटप झाँई में | |
− | + | बह चला झरना। | |
− | + | तापमय जीवन शीतल करना | |
− | + | सत्य यह तेरी सुघराई में | |
− | + | प्रेम की पवित्र परछाई में॥ | |
− | + | </poem> | |
− | तापमय जीवन शीतल करना | + | |
− | सत्य यह तेरी सुघराई में | + | |
− | प्रेम की पवित्र परछाई में॥< | + |
00:16, 20 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी
न हैं उत्पात, छटा हैं छहरी
मनोहर झरना।
कठिन गिरि कहाँ विदारित करना
बात कुछ छिपी हुई हैं गहरी
मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी
कल्पनातीत काल की घटना
हृदय को लगी अचानक रटना
देखकर झरना।
प्रथम वर्षा से इसका भरना
स्मरण हो रहा शैल का कटना
कल्पनातीत काल की घटना
कर गई प्लावित तन मन सारा
एक दिन तब अपांग की धारा
हृदय से झरना-
बह चला, जैसे दृगजल ढरना।
प्रणय वन्या ने किया पसारा
कर गई प्लावित तन मन सारा
प्रेम की पवित्र परछाई में
लालसा हरित विटप झाँई में
बह चला झरना।
तापमय जीवन शीतल करना
सत्य यह तेरी सुघराई में
प्रेम की पवित्र परछाई में॥