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"ख़ुदा का फ़रमान / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर

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तहज़ीब-ए-नवीं कारगह-ए-शीशागराँ है<br>
 
तहज़ीब-ए-नवीं कारगह-ए-शीशागराँ है<br>
आदाब-ए-जुनूँ शायर-ए-मश्रिक़ को सिखा दो<br><br>
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आदाब-ए-जुनूँ शायर-ए-मशरिक़ को सिखा दो<br><br>

17:02, 17 दिसम्बर 2006 का अवतरण

लेखक: इक़बाल

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उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो
ख़ाक-ए-उमरा के दर-ओ-दीवार हिला दो

गर्माओ ग़ुलामों का लहू सोज़-ए-यक़ीं से
कुन्जिश्क-ए-फिरोमाया को शाहीं से लड़ा दो

सुल्तानी-ए-जमहूर का आता है ज़माना
जो नक़्श-ए-कुहन तुम को नज़र आये मिटा दो

जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
उस ख़ेत के हर ख़ोशा-ए-गुन्दम को जला दो

क्यों ख़ालिक़-ओ-मख़लूक़ में हायल रहें पर्दे
पीरान-ए-कलीसा को कलीसा से हटा दो

मैं नाख़ुश-ओ-बेज़ार हूँ मरमर के सिलों से
मेरे लिये मिट्टी का हरम और बना दो

तहज़ीब-ए-नवीं कारगह-ए-शीशागराँ है
आदाब-ए-जुनूँ शायर-ए-मशरिक़ को सिखा दो