भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ख़ुदा का फ़रमान / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=इक़बाल | |
− | + | }} | |
− | |||
उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो<br> | उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो<br> |
01:25, 2 जून 2008 के समय का अवतरण
उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो
ख़ाक-ए-उमरा के दर-ओ-दीवार हिला दो
गर्माओ ग़ुलामों का लहू सोज़-ए-यक़ीं से
कुन्जिश्क-ए-फिरोमाया को शाहीं से लड़ा दो
सुल्तानी-ए-जमहूर का आता है ज़माना
जो नक़्श-ए-कुहन तुम को नज़र आये मिटा दो
जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी
उस ख़ेत के हर ख़ोशा-ए-गुन्दम को जला दो
क्यों ख़ालिक़-ओ-मख़लूक़ में हायल रहें पर्दे
पीरान-ए-कलीसा को कलीसा से हटा दो
मैं नाख़ुश-ओ-बेज़ार हूँ मरमर के सिलों से
मेरे लिये मिट्टी का हरम और बना दो
तहज़ीब-ए-नवीं कारगह-ए-शीशागराँ है
आदाब-ए-जुनूँ शायर-ए-मशरिक़ को सिखा दो