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"परिवर्तन / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
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::स्वर्ग की सुषमा जब साभार | ::स्वर्ग की सुषमा जब साभार | ||
::धरा पर करती थी अभिसार! | ::धरा पर करती थी अभिसार! | ||
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::प्रसूनों के शाश्वत-शृंगार, | ::प्रसूनों के शाश्वत-शृंगार, | ||
::(स्वर्ण-भृंगों के गंध-विहार) | ::(स्वर्ण-भृंगों के गंध-विहार) | ||
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::नग्न-सुंदरता थी सुकुमार, | ::नग्न-सुंदरता थी सुकुमार, | ||
:::ॠध्दि औ’ सिध्दि अपार! | :::ॠध्दि औ’ सिध्दि अपार! | ||
+ | अये, विश्व का स्वर्ण-स्वप्न, संसृति का प्रथम-प्रभात, | ||
+ | ::कहाँ वह सत्य, वेद-विख्यात? | ||
+ | ::दुरित, दु:ख, दैन्य न थे जब ज्ञात, | ||
+ | ::अपरिचित जराम-रण-भ्रू-पात! | ||
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अहे निष्ठुर परिवर्तन! | अहे निष्ठुर परिवर्तन! | ||
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तुम्हारा ही तांडव नर्तन | तुम्हारा ही तांडव नर्तन | ||
विश्व का करुण विवर्तन! | विश्व का करुण विवर्तन! | ||
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अहे वासुकि सहस्र फन! | अहे वासुकि सहस्र फन! | ||
− | '''रचनाकाल: | + | '''रचनाकाल: १९२४''' |
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22:35, 22 दिसम्बर 2009 का अवतरण
(१)
आज कहां वह पूर्ण-पुरातन, वह सुवर्ण का काल?
भूतियों का दिगंत-छबि-जाल,
ज्योति-चुम्बित जगती का भाल?
राशि राशि विकसित वसुधा का वह यौवन-विस्तार?
स्वर्ग की सुषमा जब साभार
धरा पर करती थी अभिसार!
प्रसूनों के शाश्वत-शृंगार,
(स्वर्ण-भृंगों के गंध-विहार)
गूंज उठते थे बारंबार,
सृष्टि के प्रथमोद्गार!
नग्न-सुंदरता थी सुकुमार,
ॠध्दि औ’ सिध्दि अपार!
अये, विश्व का स्वर्ण-स्वप्न, संसृति का प्रथम-प्रभात,
कहाँ वह सत्य, वेद-विख्यात?
दुरित, दु:ख, दैन्य न थे जब ज्ञात,
अपरिचित जराम-रण-भ्रू-पात!
(२)
अहे निष्ठुर परिवर्तन!
तुम्हारा ही तांडव नर्तन
विश्व का करुण विवर्तन!
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान, पतन!
अहे वासुकि सहस्र फन!
रचनाकाल: १९२४