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तुम और क्षणिकायें / राजीव रंजन प्रसाद
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02:41, 23 दिसम्बर 2009
तुम जाना मत जानम मेरे
मैं फिर मरुथल हो जाऊंगा..
'''तुम -६'''
मुझमें डूब गया है चाँद
और सुबह हो गयी
रात कितनी काली थी
अब सोचता हूं मैं..
</poem>
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