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"डेटलाइन पानीपत / गीत चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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(कोई अंतर नहीं)

17:02, 25 दिसम्बर 2009 का अवतरण

वाटरलू पर लिखी गई हैं कई कविताएँ

पानीपत पर भी लिखी गई होंगी

कार्ल सैंडबर्ग ने तो एक कविता में

घास से ढाँप दिया था युद्ध का मैदान

यहाँ घास नहीं है, यक़ीनन कार्ल सैंडबर्ग भी नहीं


किसी न किसी को तो दुख होगा इस बात पर

कुछ युद्ध याद रखे जाते हैं लंबे समय तक

कई उत्सव भुला दिए जाते हैं अगली सुबह

मुझे पता नहीं

पुरातत्ववेत्ताओं को इसमें कोई रुचि होगी

कि खोदा जाए यहाँ का कोई टीला

किसी कंकाल को ढूंढ़ा जाए और पूछा जाए जबरन

तुम्हारे जमाने में घी कितने पैसे किलो था

कितने में मिल जाती थी एक तेज़धार तलवार


कुछ लड़ाइयाँ दिखती नहीं

कुछ लोग होते हैं आसपास पर दिखते नहीं

कुछ हथियारों में होती ही नहीं धार

कुछ लोग शक्ल से ही बेहद दब्बू नजर आते हैं

जो लोग मार रहे थे उन्हें नहीं दिखते थे मरने वाले

हुकुम की पट्टियाँ थीं चारों ओर निगल जाती हैं रोशनी को


युद्ध के लिए अब जरूरी नहीं रहे मैदान

गली, नुक्कड़ और मुहल्लों का विस्तार हो गया है

कोई अचरज नहीं

बिल्डिंग के नीचे लोग घूम रहे हों लेकर हथियार

कोई अचरज नहीं

दरवाजा तोड़कर घर में घुस आएँ लोग


कुछ लोग हैं जो जिए जाते हैं

उन्हें नहीं पता होता जिए जाने का मतलब

कुछ लोग हैं जो बिल्कुल नहीं जानते

एक इंसान के लिए मौत का मतलब


घास नहीं ढाँप सकती इस मैदान को

घास भी जानती है

हरियाली पानी से आती है, ख़ून से नहीं


युद्ध का मैदान अब पर्यटनस्थल है

कुछ लोग घर से बनाकर लाते हैं खाना

यहाँ अखबारों पर रख खाते हैं

एक-दूसरे के पीछे दौड़ते हैं बॉल को ठोकर मारते

अंताक्षरी गाते-गाते हँसने लगते हैं


कोई चीख किसी को सुनाई नहीं देती


बच्चे यहाँ झूला झूल रहे हैं

वे देख लेंगे ज़मीन के नीचे झुककर एक बार

यकीनन बीमार पड़ जाएंगे