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|संग्रह=वाजश्रवा के बहाने / कुंवर नारायण
}}
{{KKCatKavita}}<poem>पिता से गले मिलते<br>आश्वस्त होता नचिकेता कि<br>उनका संसार अभी जीवित है।<br><br>
उसे अच्छे लगते वे घर<br>जिनमें एक आंगन हो<br>वे दीवारें अच्छी लगतीं<br>जिन पर गुदे हों<br>किसी बच्चे की तुतलाते हस्ताक्षर,<br>यह अनुभूति अच्छी लगती<br>कि मां केवल एक शब्द नहीं,<br>एक सम्पूर्ण भाषा है,<br><br>
अच्छा लगता<br>बार-बार कहीं दूर से लौटना<br>अपनों के पास,<br><br>
उसकी इच्छा होती<br>कि यात्राओं के लिए<br>असंख्य जगहें और अनन्त समय हो<br>और लौटने के लिए<br>
हर समय हर जगह अपना एक घर
</poem>
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