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"हाय अलीगढ़ / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
 
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हाय, अलीगढ़!
 
हाय, अलीगढ़!
 
 
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हाय, अलीगढ़!
 
 
बोल, बोल, तू ये कैसे दंगे हैं
 
बोल, बोल, तू ये कैसे दंगे हैं
 
 
हाय, अलीगढ़!
 
हाय, अलीगढ़!
 
 
हाय, अलीगढ़!
 
हाय, अलीगढ़!
 
 
शान्ति चाहते, सभी रहम के भिखमंगे हैं
 
शान्ति चाहते, सभी रहम के भिखमंगे हैं
 
 
सच बतलाऊँ?
 
सच बतलाऊँ?
 
 
मुझको तो लगता है, प्यारे,
 
मुझको तो लगता है, प्यारे,
 
 
हुए इकट्ठे इत्तिफ़ाक से, सारे हो नंगे हैं
 
हुए इकट्ठे इत्तिफ़ाक से, सारे हो नंगे हैं
 
 
सच बतलाऊँ?
 
सच बतलाऊँ?
 
 
तेरे उर के दुख-दरपन में
 
तेरे उर के दुख-दरपन में
 
 
हुए उजागर
 
हुए उजागर
 
 
सब कोढ़ी-भिखमंगे हैं
 
सब कोढ़ी-भिखमंगे हैं
 
 
फ़िकर पड़ी, बस, अपनी-अपनी
 
फ़िकर पड़ी, बस, अपनी-अपनी
 
 
बड़े बोल हैं
 
बड़े बोल हैं
 
 
ढमक ढोल हैं
 
ढमक ढोल हैं
 
 
पाँच स्वार्थ हैं पाँच दलों के
 
पाँच स्वार्थ हैं पाँच दलों के
 
 
हदें न दिखतीं कुटिल चालाकी
 
हदें न दिखतीं कुटिल चालाकी
 
 
ओर-छोर दिखते न छलों के
 
ओर-छोर दिखते न छलों के
 
 
बत्तिस-चौंसठ मनसूबे हैं आठ दलों के
 
बत्तिस-चौंसठ मनसूबे हैं आठ दलों के
 
  
 
(रचनाकाल : 1978)
 
(रचनाकाल : 1978)
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19:34, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

हाय, अलीगढ़!
हाय, अलीगढ़!
बोल, बोल, तू ये कैसे दंगे हैं
हाय, अलीगढ़!
हाय, अलीगढ़!
शान्ति चाहते, सभी रहम के भिखमंगे हैं
सच बतलाऊँ?
मुझको तो लगता है, प्यारे,
हुए इकट्ठे इत्तिफ़ाक से, सारे हो नंगे हैं
सच बतलाऊँ?
तेरे उर के दुख-दरपन में
हुए उजागर
सब कोढ़ी-भिखमंगे हैं
फ़िकर पड़ी, बस, अपनी-अपनी
बड़े बोल हैं
ढमक ढोल हैं
पाँच स्वार्थ हैं पाँच दलों के
हदें न दिखतीं कुटिल चालाकी
ओर-छोर दिखते न छलों के
बत्तिस-चौंसठ मनसूबे हैं आठ दलों के

(रचनाकाल : 1978)