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"ओ चिरैया / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर
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ख़ाक हुए हैं | ख़ाक हुए हैं | ||
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हरदम चुभता है | हरदम चुभता है | ||
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तपती | तपती | ||
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लोहे-सी चट्टानें | लोहे-सी चट्टानें | ||
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धूप चली | धूप चली | ||
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धरती पिंघलाने | धरती पिंघलाने | ||
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सपनों में | सपनों में | ||
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निन्दा जैसी धूल, | निन्दा जैसी धूल, | ||
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चुभन-भरे | चुभन-भरे | ||
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पग-पग हैं बबूल | पग-पग हैं बबूल | ||
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यही चुभन | यही चुभन | ||
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रचती है तेरी – | रचती है तेरी – | ||
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23:59, 26 दिसम्बर 2009 का अवतरण
ओ चिरैया!
कितनी गहरी
हुई है तेरी प्यास!
जंगल जलकर
ख़ाक हुए हैं
पर्वत –घाटी
राख हुए हैं ,
आँखों में
हरदम चुभता है
धुआँ-धुआँ आकाश।
तपती
लोहे-सी चट्टानें
धूप चली
धरती पिंघलाने
सपनों में
बादल आ बरसे
जागे हुए उदास।
उड़ी है
निन्दा जैसी धूल,
चुभन-भरे
पग-पग हैं बबूल
यही चुभन
रचती है तेरी –
पीड़ा का इतिहास।