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"जीवन की कर्मभूमि / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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00:08, 27 दिसम्बर 2009 का अवतरण

जीवन की इस कर्मभूमि में,
ठीक नहीं है बैठे रहना।
बहुत ज़रूरी है जीवन में
सबकी सुनना, अपनी कहना।

सुख जो पाए हम मुस्काए,
आँसू आए उनको सहना।
रुककर पानी सड़ जाता है,
नदी सरीखे निशदिन बहना