भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अब नहीं / संतरण / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर }} अब न...)
 
छो (अब नहीं (संतरण) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर अब नहीं / संतरण / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है)
(कोई अंतर नहीं)

14:50, 30 दिसम्बर 2009 का अवतरण

अब नहीं मेरे गगन पर
चाँद निकलेगा !

बीत जाएगी तुम्हारी याद में सारी उमर
पार करनी है अँधेरी और एकाकी डगर ;

किस तरह अवसन्न जीवन
बोझ सँभलेगा !

शांत, बेबस, मूक, निष्फल खो उमंगों को हृदय
चिर उदासी मग्न, निर्धन, खो तरंगों को हृदय

अब नहीं जीवन-जलधि में
ज्वार मचलेगा !

नेह रंजित, हर्ष पूरित, इंद्रधनुषी फाग को
उपवनों में गूँजते रस-सिक्त पंचम-राग को

क्या पता था, इस तरह
प्रारब्ध निगलेगा !