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"पटाक्षेप / जिजीविषा / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

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न हिम्मत हारता इन्सान चाहे मौत मँडराये<br>
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हज़ारों ज़िन्दगी के गीत उसने शान से गाये !<br><br>
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भरे उत्साह, दुर्दम शक्ति, जीवन-वेग-नव दुर्धर<br>
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नयी बस्ती बसी पीली पुरानी मूक माटी में !<br><br>
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धसकती जा रही दीवार डॉलर ने उठायी जो,<br>
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मिटेगा नस्ल का सिद्धान्त भी प्रत्येक कोने से<br>
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टिकेगा अब नहीं उद्जन-बमों की फ़स्ल बोने से !<br>
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टिकेगा अब नहीं उद्जन-बमों की फ़स्ल बोने से !  
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17:34, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

दमन के बादलों को चीर अब बिजली चमकती है,
अँधेरा दूर होता है, नयी आभा दमकती है !
अथक जन-शक्ति के तूफ़ान छाये आसमानों पर
कि गहरी धूल के कम्बल दिशाएँ ओढ़ती डर कर !

सदा विद्रोह होता है, ज़माना जब बदलता है,
नया संसार आता है, पुराना जीर्ण जलता है,
न हिम्मत हारता इन्सान चाहे मौत मँडराये
हज़ारों ज़िन्दगी के गीत उसने शान से गाये !

भरे उत्साह, दुर्दम शक्ति, जीवन-वेग-नव दुर्धर
नया इंसान पैदा हो गया है आज धरती पर,
कि जिसके सामने प्रतिरोध आकर टूट जाता है,
अनल जिसको बड़ा गहरा प्रबल सागर बताता है !

चुनौती दे रहा वह भाग्य के निश्चित सितारों को,
बनाया जा रहा फिर से सभी युग भग्न-तारों को,
नया मनु बल समाया यांग्त्सी की स्वस्थ घाटी में
नयी बस्ती बसी पीली पुरानी मूक माटी में !

सुरंगें उड़ रहीं साम्राज्य शाहों ने बिछायीं जो,
धसकती जा रही दीवार डॉलर ने उठायी जो,
मिटेगा नस्ल का सिद्धान्त भी प्रत्येक कोने से
टिकेगा अब नहीं उद्जन-बमों की फ़स्ल बोने से !