भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रेम / ओ पवित्र नदी / केशव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=ओ पवित्र नदी / केशव }} <Poem> भाषा सुनती न...)
 
छो (प्रेम. / केशव का नाम बदलकर प्रेम / ओ पवित्र नदी / केशव कर दिया गया है)
(कोई अंतर नहीं)

19:23, 1 जनवरी 2010 का अवतरण

भाषा सुनती नहीं
सिर्फ बोलती है
प्रेम को भी
तर्क के तराजू में
तोलती है

हद-से हद
स्मृति के तहखाने
खोलती है

प्रेम नहीं है
भाषा को एक खूबसूरत फूल की तरह
उम्र की सलाएयों पर
बुनना
प्रेम नहीं है
भाषा को
आईने की तरह
अपने-अपने अक्सों के लिए
चुनना
प्रेम है
मौसम की घाटी में
एक पक्षी की उड़ान

या नदी का
कोमल सीत्कार
या उंगलियों के पोरों से
उमड़ती पुकार