भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रक्षा / आहत युग / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (रक्षा / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर रक्षा / आहत युग / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर | |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर | ||
|संग्रह=आहत युग / महेन्द्र भटनागर | |संग्रह=आहत युग / महेन्द्र भटनागर | ||
− | }}देश की नव देह पर | + | }} |
− | चिपकी हुई | + | {{KKCatKavita}} |
− | जो अनगिनत जोंके-जलौकें, | + | <poem> |
− | रक्त-लोलुप | + | देश की नव देह पर |
− | लोभ-मोहित | + | चिपकी हुई |
− | बुभुक्षित | + | जो अनगिनत जोंके-जलौकें, |
− | जोंके-जलौकें — | + | रक्त-लोलुप |
− | आओ | + | लोभ-मोहित |
− | उन्हें नोचें-उखाड़ें, | + | बुभुक्षित |
− | धधकती आग में झोंकें ! | + | जोंके-जलौकें — |
− | उनकी | + | आओ |
− | आतुर उफ़नती वासना को | + | उन्हें नोचें-उखाड़ें, |
− | फैलने से | + | धधकती आग में झोंकें ! |
− | सब-कुछ लील लेने से | + | उनकी |
− | अविलम्ब रोकें ! | + | आतुर उफ़नती वासना को |
− | देश की नव देह | + | फैलने से |
− | यों टूटे नहीं, | + | सब-कुछ लील लेने से |
− | ख़ुदगरज़ कुछ लोग | + | अविलम्ब रोकें ! |
− | विकसित देश की सम्पन्नता | + | देश की नव देह |
− | लूटे नहीं ! < | + | यों टूटे नहीं, |
+ | ख़ुदगरज़ कुछ लोग | ||
+ | विकसित देश की सम्पन्नता | ||
+ | लूटे नहीं ! | ||
+ | </poem> |
13:14, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
देश की नव देह पर
चिपकी हुई
जो अनगिनत जोंके-जलौकें,
रक्त-लोलुप
लोभ-मोहित
बुभुक्षित
जोंके-जलौकें —
आओ
उन्हें नोचें-उखाड़ें,
धधकती आग में झोंकें !
उनकी
आतुर उफ़नती वासना को
फैलने से
सब-कुछ लील लेने से
अविलम्ब रोकें !
देश की नव देह
यों टूटे नहीं,
ख़ुदगरज़ कुछ लोग
विकसित देश की सम्पन्नता
लूटे नहीं !