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"आश्वस्त / संवर्त / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
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14:19, 2 जनवरी 2010 का अवतरण
चैराहा हो
या सतराहा
किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं,
दिग्भ्रम होने का
भय मन पर आरूढ़ नहीं।
माना
पथ से इतनी पहचान नहीं है,
मंज़िल तक हो आने का
परिज्ञान नहीं है,
पर,
लक्ष्य-दृष्टि है साफ़ अगर
तो पढ़ लेगी
पथ पर अंकित —
क्रोशों की संख्या,
उत्तर-दक्षिण
पूरब-पश्चिम
स्थित
नगरों के नाम सभी।
फिर —
चैराहों-सतराहों से
आगे बढ़ना
नहीं कठिन,
फिर —
चैराहों-सतराहों पर
होना नहीं मलिन।
नाना मत,
नाना शासन-पद्धतियाँ,
अगणित राहें,
अगणित नारे-झण्डे,
अनगिनती
आपस में तीव्र विरोधी आवाजें,
पर,
यदि युग को पढ़ सकने की
क्षमता है,
यदि जन-मन की धड़कन से
निज अन्तर की समता है,
तो असमंजस का प्रश्न न होगा,
निष्ठा निर्मूल न होगी,
चैराहों-सतराहों के मोड़ों से
पथ भूल न होगी !