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"तुम दयारों से निकलो / अश्वघोष" के अवतरणों में अंतर

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04:57, 11 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

तुम दयारों से निकलो, बाहर तो आओ घर से
कुछ हाल-चाल जानो, परिचय तो हो शहर से

वैसे तो आदमी है, समझो तो है अज़ूबा
वो जो खड़ा हुआ है टूटी कमर से

आतंक को पढ़ाया अपनी तरह से सबने
हर देश में खुले हैं इस तौर के मदरसे

ये खेत तो हमारा पहले ही झील में था
इन बादलो से पूछो, तुम क्यों यहाँ पे बरसे

किससे कहें हवा के हाथों में क्यों है खंज़र
बस ज़ख़्म ही मिले हैं जब भी गए ज़िधर से