भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पुरानी यादें-3 / मनीषा पांडेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीषा पांडेय }} पुराना घाव बनकर यादें रिसती रहती हैं द...)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=मनीषा पांडेय
+
|रचनाकार=मनीषा पांडेय  
 +
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
पुराना घाव बनकर यादें
 
पुराना घाव बनकर यादें
 
 
रिसती रहती हैं दिन-रात
 
रिसती रहती हैं दिन-रात
 
 
हलक में अटकी पड़ी रहती हैं सालों-साल
 
हलक में अटकी पड़ी रहती हैं सालों-साल
 
 
न उगली जाती हैं, न निगली
 
न उगली जाती हैं, न निगली
 +
</poem>

20:48, 26 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

पुराना घाव बनकर यादें
रिसती रहती हैं दिन-रात
हलक में अटकी पड़ी रहती हैं सालों-साल
न उगली जाती हैं, न निगली