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"सफ़र की हद है वहाँ तक के कुछ निशान रहे / राहत इन्दौरी" के अवतरणों में अंतर
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वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है, | वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है, | ||
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10:32, 15 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
सफ़र की हद है वहाँ तक कि कुछ निशान रहे|
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे|
ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल,
मज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकान रहे|
वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है,
तुम उस को दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे|
मुझे ज़मीं की गहराईयों ने दाब लिया,
मैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे|
अब अपने बीच मरासिम नहीं अदावत है,
मगर ये बात हमारे ही दर्मियान रहे|
मगर सितारों की फसलें उगा सका न कोई,
मेरी ज़मीन पे कितने ही आसमान रहे|
वो एक सवाल है फिर उस का सामना होगा,
दुआ करो कि सलामत मेरी ज़बान रहे|