भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आत्मकातरता / कात्यायनी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कात्यायनी |संग्रह=फुटपाथ पर कुर्सी / कात्यायनी }…)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:04, 20 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

एक कम्बल था मेरे पास
आत्मा को ठण्ड से बचाने के लिए
वह कवि दोस्त माँग ले गया।
निर्लज्ज को-
इतना प्यार था अपनी कविता से।
कबीर मगहर में चादर बुन रहे थे
और निर्गुन गा रहे थे।
पता चला कि कवि दोस्त से
किसी ने पूछ दिया उसकी कविता का अर्थ।
दुःख और ग्लानि उसे मृत्यु तक ले गई।
टाँग दिया ख़ुद को सूली पर
सरे-बाज़ार उसने नंगा।

रचनाकाल : जनवरी, 2000