भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कला के अभ्यासी / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=चैती / त्रिलोचन
 
|संग्रह=चैती / त्रिलोचन
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
कहेंगे जो वक्ता बन कर भले वे विकल हों,
 
कहेंगे जो वक्ता बन कर भले वे विकल हों,
 
 
कला के अभ्यासी क्षिति तल निवासी जगत के
 
कला के अभ्यासी क्षिति तल निवासी जगत के
 
 
किसी कोने में हों, समझ कर ही प्राण मन को,
 
किसी कोने में हों, समझ कर ही प्राण मन को,
 
+
करेंगे चर्चाएँ मिल कर स्मुत्सुक हॄदय से
करेंगे चर्चाएँ मिल कर स्मुत्सुक हॄदय से .
+
</poem>

05:20, 22 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

कहेंगे जो वक्ता बन कर भले वे विकल हों,
कला के अभ्यासी क्षिति तल निवासी जगत के
किसी कोने में हों, समझ कर ही प्राण मन को,
करेंगे चर्चाएँ मिल कर स्मुत्सुक हॄदय से ।