भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम बोना काँटें / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{KKGlobal}}
+
{{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
 
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
 
}}
 
}}
{{KKCatKavita}}
+
[[Category:नवगीत]]
{{KKCatGeet}}
+
 
<poem>
 
<poem>
 
तुम बोना काँटे
 
तुम बोना काँटे

18:12, 25 फ़रवरी 2010 का अवतरण

{

तुम बोना काँटे
क्योंकि फूल न पास तुम्हारे।

बो सकते हो
वही सिर्फ़ जो
उगता दिल में,
चरण पादुका
ही बन सकते
तुम महफ़िल में।
न देव शीश पर चढ़ते काँटे
साँझ सकारे ।

हँसी किसी की
अरे पल भर भी
सह न पाते,
और बिलखता देख किसी को
तुम मुस्काते ।
जो डूबते
उनको देखा
बैठ किनारे।

जीवन देकर भी है हमने
जीवन पाया,
अपने दम से
रोता मुखड़ा
भी मुस्काया।
सौ­-सौ उपवन
खिले हैं मन में
तभी हमारे ।