भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तहज़ीब के ख़िलाफ़ है / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अकबर इलाहाबादी }} {{KKCatGhazal}} <poem> तहज़ीब के ख़िलाफ़ है …) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
अब शायरी वह है जो उभारे गुनाह पर | अब शायरी वह है जो उभारे गुनाह पर | ||
− | क्या | + | क्या पूछते हो मुझसे कि मैं खुश हूँ या मलूल |
− | यह बात मुन्हसिर है तुम्हारी निगाह पर | + | यह बात मुन्हसिर<ref>टिकी</ref> है तुम्हारी निगाह पर |
</poem> | </poem> | ||
+ | |||
+ | {{KKMeaning}} |
10:30, 26 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
तहज़ीब के ख़िलाफ़ है जो लाये राह पर
अब शायरी वह है जो उभारे गुनाह पर
क्या पूछते हो मुझसे कि मैं खुश हूँ या मलूल
यह बात मुन्हसिर<ref>टिकी</ref> है तुम्हारी निगाह पर
शब्दार्थ
<references/>