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"तहज़ीब के ख़िलाफ़ है / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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क्या पूझते हो मुझसे कि मैं खुश हूँ या मलूल
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क्या पूछते हो मुझसे कि मैं खुश हूँ या मलूल
यह बात मुन्हसिर है तुम्हारी निगाह पर
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10:30, 26 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

तहज़ीब के ख़िलाफ़ है जो लाये राह पर
अब शायरी वह है जो उभारे गुनाह पर

क्या पूछते हो मुझसे कि मैं खुश हूँ या मलूल
यह बात मुन्हसिर<ref>टिकी</ref> है तुम्हारी निगाह पर

शब्दार्थ
<references/>